कोरोना वायरस के बारे में कुछ 6 दिलचस्प जानकारी।

कोरोना वायरस के बारे में कुछ 6 दिलचस्प जानकारी।

पिछले दो दशकों में सार्स, मर्स, इबोला और निपाह के बाद अब कोरोना वायरस ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है। एक के एक बाद सामने आ रहे खतरनाक वायरस को लेकर वैज्ञानिकों के हाथ भी बंधे दिखते हैं। दरअसल धरती पर करीब 10 खरब ऐसे वाइरस हैं,जिनके नाम तक हमें मालूम नहीं हैं। औस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के वैज्ञानिकों का कहना है कि फिलहाल इस विविध विषाणु मंडल ( वायरोस्फीयर ) के करीब सात हजार प्रजातियों के ही नमूने जुटाए जा सके हैं।

Covide-19

दुनिया के सबसे खतरनाक विर में शुमार इबोला और कोविड –19 पर शोधरत प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाएट्रिक का कहना है कि अभी वायरसों के बारे में बहुत कुछ खोजना बाकी है।

क्या आप जानते हैं कि कोरोना वायरस की 39 प्रजातियां हैं।

कोरोना वाइरस की 39 प्रजातियाँ पहचान की जा चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन की खोज के बाद मौजूद महामारी को कोरोनावायरस डीजीज 2019 या कोविड-19 नाम दिया हैं। इस वायरस में और सार्स में आनुवांशिक समानताएँ हैं। मार्च में इन्टरनेशनल कमिटी ऑन टैक्सोनोमी ऑफ वायरसेज ने कहा कि ये दोनों वायरस एक ही प्रजाति से हैं। सार्स फैलाने वाले वायरस को सार्स-कोव के रूप में जाना जाता है इसलिए कोविड- 19 को सार्स-कोव-2 कहा जा रहा है।

दोस्तों क्या आपको पता हैं कि 100 साल पहले भी मास्क और सामाजिक दूरी जरूरी था।

1918 Spanish Flu

स्पेन में 1918 ई० में फैले फ्लू के दौरान भी हालात आज के जैसे ही थे लोगों को मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया था और सामाजिक दूरी का पालन किया जा रहा था। दुनियाभर में करीब 5 करोड़ लोगों की जान गई थी। १५ महीने के दौरान अकेले भारत में 1.8 करोड़ लोग मारे गए थे। कोरोना के कहर के बीच 100 पुरानी ये तस्वीरें फिर सामने आ गयी है।

अभी 6,828 प्रजातियों का ही नामकरण किया गया हैं।

17वीं सदी के अंत में वायरसों की खोज के बाद यह पता चला कि रेबीज और इंफ्लुएंजा जैसी बीमारियों के कारण ये विषाणु ही हैं। दशकों कि मेहनत के बाद भी 6,828 प्रजातियों का नामकरण हो सका है। हालांकि, इसके मुकाबले कीटविज्ञानशास्त्रियों ने कीटों कि 3,80,000 प्रजातियों का नामकरण करने में सफलता हासिल की है।

समुद्र में 15 हजार वायरस पाये गए है। 

हाल के वर्षों में वैज्ञानिक वायरस के सैंपल में जेनेटिक पदार्थ और उन्नत कम्प्युटर प्रोग्राम के जरिये जीन का पता लगाते हैं। अमेरिका की ओहिया स्टेट यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ मैथ्यु सूलिवैन और उनके साथियों ने 2016 में समुद्र के अंदर 15 हजार से ज्यादा वायरसों की पहचान की। उन्होंने दो लाख वायरस को ढूंढे है।

 जीन की अदला-बदला से वायरस की पहचान करना मुश्किल हैं।

वायरोस्फीयर में मौजूद प्रजातियों के वर्ग का पता लगाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम रहा है। वायरस दूसरी प्रजातियों के साथ जीन आदान-प्रदान कर लेते हैं, जिससे इनके समूहों में स्पष्ट फर्क करना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस साल फरवरी में पाया कि एक झील में मिले वायरस के 74 जीनों में से 68 पहले किसी वायरस में नहीं मिले।

जानवरों, पौधों पर करोड़ों वायरस करते हैं असर

वैज्ञानिकों के अनुसार, अब तक विषाणुओं की 250 प्रजातियों ने ही मानव शरीर को अपना होस्ट ( मेजबान ) चुना है। यानी वायरोस्फीयर में बहुत छोटा अंश ही इंसान को संक्रमित करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों, पौधों, फंगी और प्रोटोजोंस को प्रभावित करने वाले वायरसों की तादाद करोड़ों में हैं।

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